-डा.सी.के राउत
२०७३ चैत ११, लहान पुलिस हिरासत में
तमकूंड में पड़ा पड़ा सडा गुमसाया
युगों बाद कनक कुंज छलक आया
किरण बाढ़ से नयन तिरमिराया
पलक झपकते स्वप्न एक छाया
बंसती नई नवेली दुल्हन होगी
लहराती हरियाली साड़ी में सजी
बेली चमेली सभी खिलीं होगी
मधुर चांदनी सुगंध विखेरतीं होगी
नवपल्लव आम्रपेड पर उग आया होगा
मंजर प्रेमी भंवरा को खींच लाता होगा
बालसखा इमली चखते होंगे
मीठा टुकड़ा मेरे लिए रखते होंगे
कोयल कूहक अतीत खींच लाईं
स्मित चेहरा चांद सी याद आईं
हल्कीं फुहारें बदन भिगोतीं होगी
इंद्रधनुष तले मयूर सी नाचती होगी
आंखें खुली! ये क्या पाया ?
तोरी के फूल सारे मुरझाया
खेतों में पड़े गेहूं रुखे सुखे
कहीं पडें चूभते खूटे ही खूटे
कहीं उजले बड़े- बड़े ढेंले
रंगे पाव दुल्हन हाथों में ठेले
न नवपल्लव न मंजर कहीं
टूट गए सब जो पत्थर बरसीं
पछीया बसात धूल उडातीं
बंद खिड़की जन सोए भाँती
डगर निर्जन पड़ा, घने दोपहर में
आहट कौन पहचाने, अपने ही घर में
प्रियतम नयन आश में पथराये
नन्हें प्यारे पूछ पूछ कर हारे
बूढ़ी माँ रोती सड़क किनारे
पिता पंत अथक नयन निहारें
पथिक आया गया धूंधवात में
लिया सिर्फ मूठ्ठी भर धूल हाथ में
गुजर गया उसे माथे पर लेप
शायद रहा नहीं दूजा कुछ उसका शेष।