– जितेन्द्र ‘जितू’
बड़का-बड़का सिंघ
देहोदशा सामान्यसँ किछु अलग
देह-दशा, रङ्ग-रूप आ सिंघ देखि
बहुतो लोक
मरखाह बुझैत छल ओकरा,
मुदा छल ओ सज्जन ।
बाल-बच्चा कखनो
सिंघाे पकैड़ लैत छल ओकर ।
थैर पर मुनही छुइटते
बुझल रहैत छल ओकरा
जे
कुन खेत जोतबाक छै आइ ।।
दशो वरस
थैर पर देखलियै ओकरा
ओकर उन्मुक्त जवानियोमे
आ
कमजोर कठिन बुढ़ाड़ियोमे ।
पालो लाधल, तानल घेंच
समय सङ्ग किछु झुकलै जरूर
मुदा पालो नहि खसलै
कान्हपरसँ ।।
पालोसँ प्रारम्भ भेल दायित्व
पालोए तर सम्पन्न भ’ गेल ।।
हँ, सिलेबिया आइ
छोइड़ गेल सबकेँ
बीच कोलामे पालोसँ दाबल
मृत सिलेबियाक खुजल आँखि
जेना कहैत होउ
जिनगी इएह छियै……..।।