नारायण मधुशाला
हम तऽ कहबौ मरैछेँ तऽ मरि जो ।
सुखल फूल जकाँ झखरि जो ।
आ नै चाहैत छेँ जीबैत रही ।
तऽ ई देह देशक नाम करि जो ।
कहियो तऽ ककरो काज अएबे ।
बरु अखने पार उतरि जो ।
एना पाँछा दिसि हटैके बजाए ।
कने अगे महे तोँ ससरि जो ।
कि पता सोझाँ बला डरि जायत की ?
बस किछिए देर लए सही अड़ि जो ।