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गजल

नारायण मधुशाला

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नारायण मधुशाला

हम तऽ कहबौ मरैछेँ तऽ मरि जो ।

सुखल फूल जकाँ झखरि जो ।

आ नै चाहैत छेँ जीबैत रही ।

तऽ ई देह देशक नाम करि जो ।

कहियो तऽ ककरो काज अएबे ।

बरु अखने पार उतरि जो ।

एना पाँछा दिसि हटैके बजाए ।

कने अगे महे तोँ ससरि जो ।

कि पता सोझाँ बला डरि जायत की ?

बस किछिए देर लए सही अड़ि जो ।