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मिथिलाञ्चल क्षेत्रमे तिरहुत राजक स्थापना 

मिथिलाञ्चल क्षेत्रमे तिरहुत राजक स्थापना 
Harikant lal das
इतिहासविद हरिकान्त लाल दास , सप्तरी

कौटिल्य अपन पुस्तकमे जनकवंशक अन्तिम राजा करालके मानलनि अछि । ई राजा दुराचारी रहला कारण अपने प्रजाद्वारा मारल गेलाह । जनकवंशक अन्त भेलाक बाद मिथिलामे चौदह सौ बर्ष धरि अन्धकारक युग रहल । ओ समय मिथिलाक लेल पराधीनताक युग छल । मिथिला कोनो–ने–कोनो पैघ साम्राज्यक एकटा प्रान्तक रूपमे रहैत छल । सातम् शताब्दीमे मिथिलाक नाम पर तिरहुत शब्दक प्रयोग होबए लागलैक । ओहि समयमे चीन देशक अनेकौं तीर्थयात्री भारत अबैत छल । ओ सब अपन–अपन वृतान्तमे मिथिलाक बदलामे तिरहुत शब्दक प्रयोग केलक अछि ( सी.पी.एन. सिन्हा, मिथिला अन्डर द कर्णाट्स, पृ.१८) । एहि तरहे देखल जाइत अछि मिथिला या विदेह राज्यक नामपर तिरहुत शब्दक प्रयोग भऽ गेल । ओना ई नाम मध्यकालीन अछि । गुप्त कालक एकटा अभिलेखमे गंगा नदीसँ उत्तर क्षेत्रक लेल तीरभुक्ति प्रयोग भेल अछि (Diwakar R.R., Biha through the age, 1959 page: 53) ।

शब्दार्थक दृष्टकोणसँ तीरक अर्थ नदी आ भुक्ति’ अर्थ राज्य होइत अछि । मूलतः मिथिला नदीक प्रदेश अछि । तैं भऽ सकैत अछि गुप्त कालमे मिथिलाक नाम तीर भुक्ति कऽ देल गेलैक । लिच्छविकालक एकटा अभिलेखमे नेपालक लेल नेपाल भुक्ति’ शब्दक प्रयोग सेहो कएल गेल छल । (बज्राचार्य, धन बज्र, २०३०, पृ.५३) । नेपालक सबसँ पुरान वंशावली गोपाल राज वंशावलीमे तिरहुतिया आ केशर बंशावलीमे ‘तिरहुतिया भगत ग्रामे प्रविष्ट’ शब्द लिखल देखल जाइत अछि । राणा शासनकालमे तराइ निवासीक लेल तिरहुते, तिरहुतिया शब्दक प्रयोग होइत छल । प्रख्यात विद्वान सर गंगानाथ झा एकटा उद्धरणमे लिखलन्हि अछि जे दरभंगा महराजक पूर्वज महेश ठाकुरकें मुगल सम्राट अकवरद्वारा देल गेल विर्ता पत्रमे तिरहुत शब्दक प्रयोग भेल छल । वाल्मिकी रामायण वा अन्य प्राचीन ग्रन्थमे तीरभूक्ति कऽ नाम नहिं भेटैत अछि ( ठाकुर, उपेन्द्र, १९८०, पृ.४) । ई नाम मध्यकालीन समयक थिक । इएह कारण भ’ सकैत अछि जे नान्यदेवद्वारा स्थापित राजवंश बोलचालक भाषामे तिरहुत राजवंशकरूपमे प्रसिद्ध छल । तिरहुती बंशीय राजालोकनिक शासनकाल युगान्तकारी घटना छल । कतेको शताब्दीसँ पराधिनताक दर्भाग्यपूर्ण परिस्वितिमे पिसाइत मिथिला क्षेत्र विखण्डित एवं श्रीहीन भए गेल छल । तिरहुत क्षेत्रमे एकटा नवयुगक सुत्रपात भेल जे उपलब्धि तथा गौरवगाथाक युग छल नैतिक दृष्टिकोणसँ तिरहुत वंशीय राजालोकनिक शासनकाल स्वर्ण युगक रूपमे लेल गेल अछि । मिथिला क्षेत्रमे एहि युगमे एक सुसंगठित राज्यक स्थापना भेल आ कला, साहित्य एवं मैथिली भाषाक विकास भेल (चौधरी, राधाकृष्ण, १३८८ ई, पृ.१८) । ओना ओ राजालोकनि कर्णाट प्रान्तसँ तिरहुत आएल छलाह तथापि ओसभ मिथिलाञ्चलक संस्कृति स्वीकार कएलन्हि । प्रस्तुत लेखमे मिथिलाञ्चल क्षेत्रमे तिरहुत वंशक स्थापना पर बृहत प्रकाश देल गेल अछि । सङ्गहि तिरहुत वंशीय संस्कृतिक प्रभाव नेपाल उपत्यका पर कोनरूपमे पडलैक, ताहि सम्बन्धमे प्रकाश देल गेल अछि । लेखक उत्तराद्र्धमे एहि वंशक राजालोकनि, पतनपर व्याख्या कएल गेल अछि ।Historical_Museum_2_(Janakpur)
नान्यदेवद्वारा तिरहुतमे राजवंशक स्थापना ः– महामहिम परमेश्वर प्रसिद्ध पोथी ‘मिथिला तत्व विमर्शक अनुसार नान्यदेव कर्णाट देशीय क्षत्रिय छलाह । ओ १४०० पदाति एवं घोडसवार सेनाक सङ्ग मिथिला आ नेपालमे अपन अधिकार स्थापित कऽ ननपुरा (नान्यपुर) मे अपन राजधानी बनौलनि । किंवदन्ती अछि जे नान्य एक डीहपर साँपक फनमे एक गोट श्लोक लिखल देखलनि
‘‘ रामो बेती नलौ वेत्ती राजा पुरुरवा ः ।
अलर्कस्य धनं प्राप्य नान्यो राजा भविष्यति । ’’
मुकुन्दझा बक्सी अपन पुस्तक ‘मिथिला भाषामय इतिहासमे लिखैत छथि जे एहि समयमे नान्य सुगौना नामक गाममे ओतए जमीन्दार लोकनिक वास जानि ओहिठाम कमला नदीक निकटस्थ कुटी बना कोनो प्रकारक आश्रय पएबाक लोभमे रहए लगलाह । सङ्गमे मात्र एक गोट घोडा आ एकगोट बन्दूक छलन्हि । साँपक फानपर लिखल श्लोककें पढवाक लेल एकगोट पंडितके कहलथिन्ह । तखन ओ पंडित उक्त श्लोक पढलनि आ ओकर अर्थ सेहो फरिछौलनि । जे एहि प्रकार छल ‘‘मदालसा नामक एक राजर्षिक चतुर्थ पुत्र, जनिक नाम माय ‘अलक्र्य’ रखने छलथिन्ह, तिनक यज्ञक वशिष्ट धन (जकरा लेनिहार केओ ब्राह्मण नहिं भेटल छलथिन्ह) एहि ठाम मिथिलाक पुण्य भुमिमे गाड़ल अछि, से अहीं के भेटत, जाहि सँ अहाँ मिथिलाक राजा बनव । एकर साक्षी राम नल आ पुरुरबा राजा छथि । ’’ परमेश्वर झा आगाँ लिखैत छथि जे ओकर उप्रान्त नान्यदेव डीह खोधबा कऽ आपार धन प्राप्त कएलन्हि । नान्यदेव जेहि डीह पर नागक फन देखने छलाह, ओतऽ अखनो नागक स्थान छैक आ ओकर पूजा होइत छैक । अ‍ोही जगह पर नान्य अपर राजधानी वनलन्हि । ओ स्थान नानपुर (नान्यपुरक अपभ्रंस) नानपुराक नामसँ अखनो प्रसिद्ध अछि । ओतऽ अखनो खण्डहर छैक जे कोनो राजदरबारक भग्नावशेष बुझाइत अछि ।
नान्यपुर नान्यदेवक प्रथम राजधानी छल । बहुत शीघ्र नान्यदेव ई स्थान त्याग करसँऽ बाध्य भऽ गेलाह । ओ युग आक्रमणक छल । सङ्गहि पाल राजालोकनि आ बङ्गालक सेनसभक नान्यदेवक नव सङ्गठित राज्यपर नजरि गडल छलन्हि । तैं किछु समय पश्चात ओ अपन राजधानी सिम्रौनगढ़ स्थानान्तर कएलन्हि । ई जगह बारा जिलाक कलैयासँ २० कि.मीं दक्षिण पूर्व पडैत छैक । जनक राजा लोकनिक राजधानी जनकपुरसँ लगभग ४० कि.मी. दूरीपर अवस्थित रहला कारणे इहो भू–भाग प्राचीन मिथिला जनपदक भूभाग छल । मुदा ओहि समयमे ई क्षेत्र तिरहुत क्षेत्रक नामसँ प्रचलित छल । ई जगह बहुत उपयुक्त छलैक । एहि राजधानीक सुरक्षा व्यवस्थाक प्रशंसा तिब्बतक विद्वान धर्मस्वामी अपन पुस्तकमे कएने छथि । २२३ वर्ष ई जगहसँ मिथिलाक शासन चलल । सिम्रौनगढक एकटा प्रवेशद्वारमे लिखल अभिलेखक चर्चा कवि विद्यापति अपन पुस्तक ‘‘पुरुष परीक्षा’’ मे कएने छथि । सिलविन ले भी ओहि श्लोककें किछु भिन्न रूपसँ पढ़लन्हि । जखन नान्य नानपुरामे छलाह ओहि समयमे ओ अपना कें कर्णाट–कुल–भुषण कहैत छलाह । सिम्रौनगढ़मे तिरहुत स्थापना कएलाक बाद ओ मिथिलेश वा ‘मिथिलेश्वर’ क उपाधि लेलैन्ह । विहार तरफक इलाका जीतलाकबाद नान्य देब नेपाल तरफ बागमती नदी तक अपन सीमा विस्तार कएलन्हि (खत्री, प्रेम, सिम्रौनगढ़, एक विलुप्त नगरको चर्चा, गरिमा, अंक ४, चैत्र, २०४४, पृ.८४) । मिथिला एवं नेपालक विद्वानसभ एहि बातकें स्वीकार कएलन्हि अछि जे नान्यदेवक समयसँ मिथिलाक एकीकरण एकबेर फेर शुरु भेल । विदेहकालीन जनपद एकीकृत छल । तंै कहल जाइत अछि जे सिम्रौनगढक तिरहुत राजालोकनि राजा जनकक समयक मिथिलाक गौरब बढ़ौलन्हि । एहि बातमे कोनो विवाद नहि, जे नान्यदेवक मृत्युसँ पूर्व तिरहुत राज्य एक शक्तिशाली राज्यक रूपमे मान्यता प्राप्त कए चुकल छल । जखन नान्यदेव नान्यपुरसँ शासन प्रारम्भ केएलन्हि,, ओहि समयमे हुनक राज्यक आकार छोट छलन्हि ।
तिरहुत राज स्थापना कएलासँ पूर्व ओ नेपालक मध्य तराइ क्षेत्र आ उत्तर भारत तरफक विजय कऽ चुकल छलाह । प्रमाण त’ इहो भेटैत अछि जे नान्यदेव वागमतीक क्षेत्र अपना अधीनमे लऽ लेने छलाह । खत्री प्रेम, गरिमा अंक ४, चैत्र २०४४ , पृ. ८४ ) । नान्यदेव विजेता छलाह से हुनक मंत्री श्रीधर कायस्थद्वारा अन्धरा ठाढी गाममे स्थापित एकटा अभिलेखसँ सिद्ध होइत अछि । ‘ श्री मान् नान्यतिज्जेता’ जकर शाब्दिक अर्थ लगाओल गेलैक जे राजा नान्यदेव बहुत पैघ विजेता छलाह । ओना नान्यदवके अपन राज्यकालमे बहुत आरोह–अबरोह देखऽ पड़लन्हि । अपन मृत्युसँ पूर्व मिथिलाञ्चलक तिरहुत राजवंश एकटा शक्तिशाली क्षेत्रकरूपमे मान्यता प्राप्त कए चुकल छल । भारतक इतिहासविदक कथन छन्हि जे नान्यदेव अपन राज्यकालमे पाल, काला चुरी, सेन आ गढवालक राजालोकनिक सङ्ग सौहाद्र सम्बन्ध राखक प्रयास केएलन्हि, से काज कऽ के अपनराज्यके सुसङ्गठित आ व्यवस्थित कएलन्हि (चौधरी राधाकृष्ण, १९८८, पृ.१९) । नेपालक सभसँ पुरान गोपालराज वंश वलीमे उल्लेख छैक जे नान्यदेव उपत्यकाक राजा नरमल देवसँ पराजित भ’ गेल छलाह । ओही वंशावलीक कथन छैक तिरहुते राजा नान्यदेव डोय छलाह जकर अर्थ डोम होइत छैक जखन कि नेपालक इतिहासविद श्री ज्ञानमाणि । नेपाल स्वीकार करैत छथि नान्यदेव डोम नहिं, कर्णनट वंशीय क्षत्रिय छलाह । तैं लगैत अछि गोपाल राजवंशीवलीक बर्णन पूर्वाग्रहित अछि जेना उपर चर्चा कए चुकल छी–नान्यदेवके अपन जीवनमे बहुत आरोह अवरोहक सामना करऽ पड़लन्हि । वङ्गालक सेन राजा लोकनिक गृद्ध दृष्टि नान्यदेवपर पडले छलन्हि । जीवनक अन्तिम समयमे ओ बङ्गालक सेना राजासँ पराजित भऽ नजरबन्द वा बन्दी बना लेल गेलाह । बादमे हिनक बालक मल्लदेव अपन पिताके छोड़ा कऽ राजधानी लऽ अनलथिन्ह । अनुमान कएल जाइत अछि जे नान्यदेव ५०–५४ वर्ष धरि शासन केलन्हि (तारानन्द मिश्र, पृ. ८) । हिनक राज्यकालमे श्रीधर कायस्थ आ रत्नदेव दू गोट मंत्री छलन्हि । गंगदेव आ मल्लदेव दू बालक छलन्हि । नेपालक एकटा अनुसन्धान नान्यदेवक विषयमे लिखैत अथि Nanya deva was never given proper place in the history of nepal while newar kings had dectared as their own pradhon purush (highly resprctel ancestor) and founder of their dynasty.

पीठपर गंगदेव ः नान्यदेवके मृत्युकबाद जेठ बालक गंगादेब तिरहुतक राजा भेलाह । हिनका बङ्गालक पाल वंशीय राजा बल्लाल सेनसँ युद्ध करए पडलन्हि । मुल्ला तकिया अनुसार (चौधरी, राधाकृष्ण, १९७०, पृ्. १५) ई राजा अपन राजधानी दरभङ्गा लए गेलाह ओतए भङ्गासागर पोखैर निर्माण कएलन्हि । हिनक कार्य दुटा मंत्रीक उल्लेख भेटैत अछि । कवि विद्यापति एहि राजाके रुपमे वणैन केएने छथि ।
मल्लदेव ः नान्यदेवक दोसर बालक मल्लदेवके अपन ज्येष्ठ अग्रजसँ नीक सम्बन्ध नहि कारणे विहार प्रान्त झंझारपुर अन्र्तगत भीठ भगवानपुरमे अपन राजधानी निर्माण करौलन्हि । ओतऽ लक्ष्मीनारायण मन्दिरक मुर्तिक पादपीठ पर ऊँ श्री मल्ल देवस्य (ठाकुर, १९५६, पृ्.२५५) लीखल अछि । लहेयिासरायक नजदीक कार्यरत रहैथ । राजा मल्लदेव सोलह वर्षक अल्प ऊमे्रमे मारल गेलाह । (ग्रीअर्सन, पुरुषपरीक्षा, १३)
नरसिंह देव ः मिथिलाञ्चलक तिरहुत वंशीय राजा गंगादेवक उत्तराधिकारी नरसिंहदेव छलाह । विद्यापति पुरुषपरीक्षाक अनुसार ओ दिल्लीक सुल्तान शाहावुहीन गोरीक सेवामे उपस्थित भए सेनापति करूपमे सेहो काअ केएलन्हि । मुल्ला तकिया अनुसार ओ बङ्गालक नवावके खुश करक लेल कर पठादेल करथिन्ह । दोसर तरफ हिनका दिल्लीक दोसर सुल्तान इल्तुतमिशसँ सम्झौता करए पडलन्हि । हिनक राज्यकाल १२२५ या १२२७ ए डी तक छलन्हि (तारानन्दमिश्र, पृ.–१०) । एहि राजाके विषयमे एतवा धरि कहल जास कैत अछि मुसलमानी आक्रमणक युगमे अपना के बचा कऽ शासन कएलन्हि ।
रामसिंह देव ः– नरसिंह देवक उत्तराधिकारी रामसिंह देव अपन तिरहुत वंशक सभसँ योग्य छलाह । नान्यदेवक बाद ओ अपन वंशक सभसँ योग्य आ कुटनीतिक राजा मानल जाइत छथि । केशरवंशा वलीमे हिनक नाम देखल गेल अछि । (नरसिंहदेव नृपति श्री रामसिंह हस्ततः ) ।
मुसलमानी आक्रमणक युगमे उत्तर भारतक राजनीति अत्यन्त खराब छलैक । समस्त उत्तर भारतक राजा परास्त भऽगेल छल । हिन्दुराज्यक रूपमे मिथिला अपन अस्तित्व बचाकऽ रखने छल । एकर श्रेय रामसिंह देव कें देल जाइत छन्हि । ओ दरभङ्गााके अपन दोसर राजधानी बनौने छलाह (चौधरी, राधाकृष्ण, १९७० पृ.–१९) । अमरकोष टीका ग्रन्थमे रामसिंहदेवक उल्लेख भेटैत अछि । ओहि ग्रन्थमे रामसिंहदेवकें ‘मिथिला महेन्द्र’ क उपाधिसँ विभुषित कएल गेल अछि । हिनक राज्यकालमे तिब्बत देशक वौद्ध धर्मगुरु धर्म स्वामी तिरहुतक राजधानी सिम्रौनगद आएल छलाह । ओ अपन वृतान्तमे रामसिंहदेवकें बहुत योग्य राजाक रूपमे वर्णन कएने छथि । रामसिंहदेव नेपाल उपत्यका पर कतेको वेर आक्रमण केएलन्हि आ उपत्यकासँ कर उठा कऽ वापस अपन राजधानी चल जाइत छलाह । एहि बातक उल्लेख गोपालराज वंशावलीमे सेहो भेटैत अछि । अपन राजधानीकें मुसलमानी आक्रमणसँ बचेबाक लेल सुरक्षात्मक देवाल दियौलन्हि । हिनक कार्यकालक सम्बन्धमे एकटा फुटल शिलालेख सिमै्रानगढमे भटलैक । हिनक राजकाल बहुत लम्बा समय तक रहलन्हि (१२२५ वा १२२७ सँ १२८५ ई. तक ) । तिरहुतवंशीय एहि राजाके सम्बन्धमे ई बात बहबामे कोनो अतिशयोक्ति नहि होएत जे मुसलामानी युगमे तिरहुतके बचाक रखबामे सपल भेलैथ ।
शक्रसिंहदेव ःं¬– रामसिंहदेवक बाद तिरहुत राजवंशक अगिला राजा शक्रसिंहदेव भेलाह । कतौ–कत्तौ हिनक नाम शक्तिसिंह लिखल जाइत छैक । इतिहासविद तारानन्द मिश्र हिनका तिरहुत वंशक कमजोर शसककें रूपमे चित्रण कएलन्हि अछि । सिम्रौनगढक संगोष्ठी , पृ.१३) । हुनक इहो कथन छन्हि जे शक्रसिंह दरभङ्गासँ पूब सकरीमे अपनालेल दोसर राजधानी बनौलन्हि । श्री मिश्रक कथन छन्हि जे ओ अलाउद्दीन खिल्जीसँ तीनबेर पराजित भेल छलाह । ओना शक्रसिंह देव कें एक निरंकुश राजाक रूपमे चित्रण भेल अछि । वि.स.२०४०–४१ मे त्रि.वि.द्वारा कराओल गेल अनुसन्धान परियोजना पृष्ठ २९ क प्रतिवेदन अनुसार राजा शक्रकें अपन उदण्ड वा उच्छंखल लस्वभावक स्वच्छन्द अपन राज्यमे घुमफिर करएके सिलसिलामे सखडा आबि रहऽ लगलाह जे ओहि समयमे तिरहुत राज्यके हिस्सा छलैक ( हरिकान्त लाल दास तथा पीताम्बर लाल यादवक अनुसंधान परियोजनाक प्रतिवेदनक क अंश, पृ २९, २०४०–४१) । शक्रसिंह अपन जीवनक अन्तिम समय सखडामे वितोलन्हि । अपन जीवन कालमे ओ सखड़ामे अपन कुलदेवी भगवतीक मन्दिरक निर्माण करालन्हि जेकर तोडफोड दिल्लीक सुल्तान गयाशुद्यीन तुगलकद्वारा क’ देल गेल छल । मुत्र्तिक शिर त’ नहि भेटलैक मुदा मूर्तिक तीन टुक्रा पोखैरसँ प्राप्त भेलैक ।
हरिसिंहदेव ः– तिरहुत राजवंशक अन्तिम राजा हरिसिंहदेव छलाह । अपन वंशक हिनका सर्वाधिक प्रभावशाली राजा मानल जाइत छन्हि । मिथिलाक राजनैतिक आकाशमे हिनक उदय ओ अस्त धुमकेतुसँ सदृश छल । इतिहासमे बहुतो राजा भेलाह, एक सँ एक प्रतापी, विजेता, सुधारक भेलथि, मुदा हरिसिंह देवसँ किनको गणना नहिं भए सकैत अछि । हिनक उदय–अस्तक कथा जाहि तरहक रोमांचक अछि तकर दोसर दृष्टान्त अन्यत्र भेटव दुर्लभ (उपेन्द्र ठाकुर, पृ.२५) । हरिसिंह देवक विवाह भक्तपुरक राजा तँगमल्ललक कन्या देवलदेवी (देवलक्ष्मी) सँ भेल छलन्हि । ताहिसँ हिनक प्रभाव बढिते गेलन्हि । मुसलमानी आक्रमणसँ अपनाक रक्षाक लेल ओ अपन दोसर राजधानी विहार प्रान्तक बहेरामे बनौने छलाह जकर भग्नावशेष अखनो धरि देखल गेलैक अछि । समाज सुधारक दृष्टिएँ हिनक शासनकाल सर्वाधिक महत्वपूर्ण छल । हरिसिंह देव पंजी प्रथाक प्रवन्ध कर्ता छलाह । मैथिल समाज अन्तर्गत दुषित बातसभक अन्त भए गेल । ई प्रथा ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थक अतिरिक्त राजपूत जातिमे सेहो लागू छल ( मिश्र, जयकान्त, मैथिली साहित्यक इतिहास, साहित्य अकादमी, दिल्ली, १९८८, पृ.–३०) । छओ सय बर्ष पूर्व ई व्यवस्था कएल गेल छल तथा सम्प्रतियो ई अक्षुण अछि । एकर व्यापकता ओ लोकप्रियता देखि ई मानऽ पड़त जे एहि प्रकारक समाज व्यवस्था नइ तँ एहिसँ पूर्व भेल छल आओर नइ एकरा बादे (उपेन्द्र ठाकुर, पृ.–३७) ।
हरिसिंहदेवक राजकालमे विद्वानलोकनिकें संरक्षण भेटलैक । हिनक समयमे मंत्री ज्योतिरीश्वर ठाकुर ‘धुर्त समागम’ नामक पुस्तक मैथिली भाषामे लिखलन्हि जाहिमे मुसलमानक युद्धमे हुनक बीरताक वर्णन अछि । बीरेश्वर, गणेश्वर, रामदत्त तथा ज्योतिरीश्वर, चँडेश्वर सन योग्यमंत्री भेटल छलन्हि ।
कामेश्वर ठाकुरक पूर्वज ओएन ठाकुर हरिसिंह देवक राजपंडित छलाह । राजाद्वारा हुनका ओ एन गाम बीरता देल गेल छलन्हि ।
हरिसिंह देवक पतन ः– दिल्लीक सुल्तान गयाशुद्दीनक आक्रमणक कारणे हरिसिंह देवक पतन भेलन्हि । मुसलमान आक्रमणकारीद्वारा तिरहुतक राजधानी ध्वस्त क’ देल गेलैक जकर चर्चा गोपाल राज वंशावलीमे सेहो वर्णित अछि । हरिसिंह देव ओतऽ सँ दोलखा लग राजग्राम चल गेलाह । ओतक माझी सभद्वारा हुनक सम्पूर्ण सम्पति हरण कए हुनक सम्पूर्ण परिवारकें बन्दी बना देल गेलन्हि । तीनपाटनमे हुनक मृत्यु भेलन्हि । एहि तरहें तिरहुतक गौरबमय राजवंशक अन्त भए गेल । मुसलमानी सेना बनपाक रास्ता होइत दरभङ्गाके तिरहुतक राजधानी बना कऽ करीब ३० वर्ष प्रत्यक्ष रुपसँ शासन चलेलाक बाद तिरहुतक शासनक जिम्मा कामेश्वर ठाकुर के प्रदान कएलन्हि, नियमित जे रूपसँ दिल्लीकसुल्तानक करदाता छलाह ।
एहि तरहें देखल गेल मिथिलाञ्चल क्षेत्रमे तिरहुत वंशक शासन २२८ वर्ष धरि रहलैक । एहि वंशक राजालोकनि मिथिलाक गौरब बढौलन्हि । ओहि युगमे मुसलमानसँ तबाह भऽ कऽ विद्वानसभ सिम्रौनगढ़ आबि दरबारमे स्थान प्राप्त कएलन्हि । जहिना जनककालीन मिथिलामे वैैदिक साहित्यक खूब विकास भेल छलैक । आ राजा जनकक दरबार विद्वानसभक सङ्गमस्थल छल, तहिना तिरहुत दरबार साहित्यकार लोकनिक भंडार छल (दास, हरिकान्त लाल, नेपालक मिथिलाञ्चल क्षेत्र, वाणी अंक २, २०५३) एहि वंशक दोसर विशेषता ई छल जे तिरहुत वंशक शासनककालमे मिथिला एहेन क्षेत्र छल जाहि ठाम मुसलमानी सभ्यता आ संस्कृतिक कोनो प्रभाव नहि पडलैक । मिथिला क्षेत्र एक बेर पुनः एकीकृत भेल । तिरहुतवंशीय राजालोकनिक शासनमे हिन्दूत्व जागरणमे महत्वपूर्ण योगदान छल । मैथिली भाषाक क्षेत्रमे एहि वंशक राजालोकनिक शासनकालमे जतेक काज भेल, तकरा लेल ओ युग बहुत दिन धरि स्मरण कएल जाएत । मुन्सी रघुनन्दन दास मैथिली भाषामे श्रीधर दासक ‘सदुक्ति कर्णामृत’ लिखलन्हि जकर पाँडुलिपी मधुबनी जिलाक एकटा कर्ण कायस्थ परिबारमे सुरक्षित अछि । एहि वंशक शासन कालमे मिथिलाक आर्थिक, सामाजिक, स्थापत्य कला, मूर्तिकला अनेक शास्त्र महत्वपूर्ण ग्रन्थ तयार भेलैक (तारानन्द मिश्र, पृ–५, नेपाल मैथिल समाज पत्रिका, २०५७ ) ।
तिरहुत संस्कृतिक उपत्यका पर प्रभाव ः–
हरिसिंहदेवक मृत्युक बाद हुनक रानी अपन नैहर भक्तपुरमे शरणापन्न भेलीह । पश्चात ओतक राजा जयरुद्रमल्लक मृत्युकबाद ओ करीब ४१ वर्ष तक शासनक सर्वेसर्वा भऽ कऽ राज कएलन्हि । नेपाल उपत्यकाक राजनीतितथा सांस्कृतिक विकासमे तिरहुतक बहुत पैघ योगदान छल । भाषा वंशावली त’ एतए तक विवरण दैत अछि जे नेपाल उपत्यकाक मल्ल राजासभ अपनाके नान्यदेवक वंशज कहैत बहुत गौरवान्वित महसूस करैत छलाह (नोपल, ज्ञाणमणि, नेपालको पूर्व मध्यकालको इतिहास, सि.ना.स., २०५४० । इहो बात उल्लेखित अछि जे जयस्थितिमल्ल हरिसिंह देवक वंशज छलाह जे तिरहुते राजा जकाँ काठमाण्डू उपत्यकामे सामाजिक सुधार कएलन्हि । हरिसिंह देवक रानी जखन अपन नैहर एलीह, हुनका साथ तिरहुत दरबारक अनेको विद्वान काठमाण्डू अबैत गेलाह । मिथिलाक विद्वानसभ काठमाण्डू पहुँचलाक बाद मैथिल संस्कृति उपत्यकामे स्थान पओलक । मल्लराजालोकनि मैथिली भाषामे गीत, नाटक, श्लोक रचना कएलन्हि । मैथिली भाषामे शिलालेख लिखाओल गेल । मैथिली संस्कृतिक प्रतीक अरिपन, माछ, कोहबरक चित्र भक्तपुर दरबारमे मिति–चित्रक रुपमे अङ्किक छल, जेकर फोटो डा.के.पी. जायसवाल लऽ कऽ गेल छलाह जे अखनो पटनाक संग्रहालयमे कायम अछि । पंचायत शासनकालमे तकरा नष्ट क’ देल गेलैक कहल त इहो जाइत छैक तुलजा भवानीक मूत्र्ति तिरहुते राज्यसँ उपत्यका पहुँचल छल जकर स्थापना भक्तपुर आ कान्तिपुरमे एक साथ भेलैक । मिथिला–संस्कृतिक प्रचार काठमाण्डू उपत्यकामे भेल छल एकर प्रमाण ई अछि जे मिथिलाक परम्परागत नारदीयक प्रचार भक्तपुरमे भेल छल आ बहुत लोकप्रिय रहल । एहि तरहे देखल जाइत अछि जे नेपाल उपत्यकाक साँस्कृतिक विकासमे मिथिलाक बहुत पैघ योगदान रहल अछि ( तारानन्द मिश्र, पृष्ट ६) । (लेखक मैथिली साहित्य परिषद् राजविराजक पूर्व अध्यक्ष छथि ।)