सन्दर्भः अन्तर्राष्ट्रीय नारी दिवस
श्यामसुन्दर यादव ‘पथिक’
प्रिय सखी ललिता
सु–मधुर याद
हम अहिठाम जेना–तेना जीनगी काइट रहल छियौ । तोहर कुशलता आ सुखी जीवनके लेल ईश्वरसँ दुनु हाथ जोडि कए कामना करैत छियौ ।
गै हम त एखन अप्पन सासुरमे नारकीय जीवन बितारहल छियौ । कतेक पीडा–बेदना आ गञ्जन सहि रहल छियौ ओ सभटा बात पत्रमे त सम्भव नहि छै मुदा आइ अपन दिलक किछु बात एहि पत्रक माध्यमसँ लिख रहल छियौ । हमर बाबुजीक आर्थिक अवस्था आऽ लाचारीपनाके विषयमे तोरा त बुझले छौ । कतेक दुःख काइट, कतए कतए जा कए दहेजक टका प्रबन्ध कएने छलै । हम त बाबुजी कहैत रहियै कमसे कम हमरा उच्च शिक्षा हासिल करए दीअ मुदा ओ सभ हमर बातके नहि धीआन देलक । कहलक जे लडका ओभरसियरी क कए प्राइभेटमे काज क रहल छै आ देखएमे सेहो बड्ड सुन्दर छै । एहेन सु–अवसर किया छोडब ? दहेजक लेल नगद तीन लाख टका, अन्य सरसामानसहित एकटा मोटरसाइकिलके माग भेल छल ।
दहेजक फरमाइस पूर्ती करए हमर बाबुजी पाँच कट्ठा गोँडहा खेत बेच देलक । खौब धुमधाम सऽ बिआह भेल । ओना त हम ततेक नहि बुझैत छलियै । यद्यपी बिआहके बात सुनि हम सेहो खुशीये छलियै । तैं बाबु–मायक बातके प्रतिवाद नहि क’ सकलियै । दहेजक रुपमे माग भेल टका सहित सभ सामान पूर्तिक कए देलक मुदा मोटरसाइकील बादमे देब से बाबुजी प्रतिवद्धता कएने छल । बिआहक किछु महिनाधरि त हमरा सासुरमे बड्ड मलार दुलार भेलौ । सासु ससुर सेहो बड्ड मानैत छल । हमरा त एना बुझाइत छल जे हमरा हम स्वर्गक संसारमे आबि गेल छी । कनियो माय बाबुजीक रिक्तताक आभास नहि होइत छल । घरवाला सेहो जान सऽ बढि कए मानैत छल । हुनक प्यारमे हम दुनियाक सभ किछु भुइल जाइत छलौं । ओ हमरा एतेक खुशी दैत छल से बात हमरा पत्रमे लिखनाइ सम्भव नहि छौ । दुनियाँके सारा खुशी हमरा मिलल छल ।
गै, कि कहियौ ? ओ खुशीक क्षण नहि रहि गेलौ । एखन हमरा एना बुझाइय जे हम कोन नरकमे चलि आएल छी । कोन जनमके पाप कएने छलौ जे हमरा एहेन दर्द सहए पडि रहल अछि ।
बिआहक तीन चारि महिना बाद हमर खुशीक संसारमे अगडाही लागि गेलौ । एकर एक मात्र कारण छल दहेज । अर्थात दहेजक रुपमे गछल गेल मोटरसाइकिल बाबुजी नहि द सकलाक बाद हम एखन सासु, ससुर आऽ घरवालाक लेल अप्रिय बनि गेल छी । बिआहक तीन महिनाक बाद सासु दहेजक मोटरसाइकीलक चर्चा करए लागल । ओ हमर ससुरके सेहो अपना पक्षमे ल कए हमरा उलहन उपराग देनाइ शुरु क देलक । नैहरास मोटरसाइकील आनवाक लेल मानसिक पीडा थपैत गेल । हम बाध्य भऽ गाम जा कए बाबु मायके सभटा बात कहलियैन्ह । घरक आर्थिक जर्जरता, गम्भीर बिमार माय आ हमर पीडा सुनि कए बाबुजी कानए लागलखिन्ह । हम सेहो स्तब्ध भ गेलियै । हमरो नहि रहल गेल । घारमे घार मिलाकए बाबु, माय आऽ हम खुब कानलौं । बाबुजी कनैत कहलैन्हि ‘साबित्री, तोहर बिआहमे गोँडहा खेत बेचए पडल । पाँच कट्ठा डिह मध्ये दू कट्ठा मायक ईलाजमे बिका गेल । एखनो मायक अवस्था ओहने छौ, बौआ बालगोबिन्द आ जानकीक पढाइक खर्च जुटबए परैय । एखन आरा मीलमे काज करैत छी आ वैह टका स जेनातेना गुजारा चलाबए पडि रहल अछि । तों सम्धी, सम्धीन आ दुल्हाके कहि दीहै जे हमर बाबुजी बिआहमे गछलाहा मोटरसाइकिल किछु महिनाबाद खरिद देत । एखन लाचारी छै ।
बाबुजीक दुःखडा सुनि हम किछु नहि बाजि सकलौं । पुनः लौटके सासुर एलौ, नैहरक समस्या सुनेला पर हमर घरवाला आ सासु मिल कए निर्घात माइरपीट कएलक । हम सहैत रहि गेलौं, ओ सभ हमर देहपर लात मुक्का बरसावैत रहि गेल । बाबु मायक अवस्था देखि कए गञ्जन सहैत रहलौं । एकोबेर हमरा सासु, ससुर आ घरवाला निक बात नहि कहैत छौ । काल्हिधरि जे घरबाला हमरा अपन जान सऽ बढि कए मानैत छल आइ वैह घरबाला दहेजक कारण बिरान बनि गेल अछि । हम एतेक अप्रिय भ गेलियौ जे हमरे बाबुजीक देलहा पलङ्गपर ओ सुतैत छथि आ हम निचामे अछुत जँका गोनैर पर कहुना कहुना राइत बितबए छी । एतबे नहि, कखनोकाल हमर घरवाला हमरासँ बातो क लैत अछि त सासु दहेजक उपराग द कए हुनका मोनके घुमा दैत अछि । कोनो न कोनो बहाना बना कए सासु हमर घरवालासँ माइर खुआवैत रहैय । एखनधरि सभकिछु हम वरण करैत जा रहल छियौ ।
ललिता, एखन त हमर सासु हमर घरवालाके सिखा पढा कए तुल क देने छथि । दोसर शादी करए लेल सेहो कहि रहल अछि । बेर–बेर हमरा घरस निकालएके प्रयास कएल जा रहल अछि । एकबेर त हमर घरवाला घरमे नहि छल, हमर सासु हमरा सुतल अवस्थामे बिछाओनमे मट्टितेल छिट कए आगि लगा देलक । हम निन्दमे रही, देहमे आगि लागल छल । शरिरक किछु भाग जख्मी भऽ गेल । अस्पताल पहुँचाओल गेल । एक सप्ताहक बाद अस्पतालस पूर्जी काटलक । हमर पुतौह देहमे मटिया तेल ढाइर आइग लगाकए आत्महत्या करैत छल से कहि नवका प्रपञ्च रचि हमर सासु लोकसभके पतियावैत छथि । घरक बात छी केकरा कही, लोक नहि निक कहत, यैह सोचि चुप रहि गेलौं ।
एहि घटनाके बाद हमर देह झामर भऽ गेल छौ । हमर जीवनसँगी सेहो आब हमरा आओर गलत नजरि सऽ देखए लागल छथि । हम कि करी आ नै करी, किछु नहि फुराइय । बाबुमायके अपन बेदना सुना कए हुनका सभके दिमागक बोझ नहि बनए चाहैत छी । बेर–बेर हमरा घरस निकालल जा रहल छियौ, हम घुरि कए पुनः आबि नारकीय जीवन बिता रहल छियौ ।
आखिर आब कि करी ? जिनगी बोझ बुझाइत रहैय । कखनोकाल ईहो मोन होइत रहैय जे जिनगी समाप्त क ली । मुदा जिनगी समाप्त केनाइ त जीनगीस हार माननाइ थिक । तैं हम जिनगीस’ कदापी हार नहि मानएके पक्षमे छी । कियाक त हम मानव छी । जाधरि जीयब ताधरि संघर्ष करब । समाजक लोक सेहो केहेन संवेदना विहिन छै से तोरा बुझले छौ । दहेज प्रथाक कारणसऽ कतेको महिलाके आगि लगाकए जराओल जा रहल छै । हँसी–खुशी सऽ जीनगी जिबएके लालसा होेइतो अकालमे बिभिन्न बहानामे मारल जा रहल छैक ।
एखनो समाजमे गाय महीस जँका लडकाक खरिद बिक्री भ रहल छैक । जे लडका जतेक चेतनशील अर्थात जतेक पढहल ततेक दाम । पशु जँका खरिद बिक्रीक व्यापार कहियाधरि चलैत रहत ? मानव सृष्टिमे महिला आ पुरुष दूटा मात्र जाति रहितो महिलाप्रति एहेन बिभेद कियाक ? हँ गै ललिता, एखनो हमर तोहर समाजमे दहेजेक कारण कतेको बेटीसभक बिआह नहि भ पाबि रहल अछि । देखादेखि सभक आँखिक सामने अन्याय भ रहल अछि । एहन कु–प्रथा अन्त्य करबाक नाममे प्रत्येक साल करोडो टका खर्च भ रहल अछि मुदा प्रतिफल शुन्य अछि । अपनाके अभियानी कहएवाला व्यक्तिसभ स्वयं दहेज लेनदेनके प्रतिष्ठा बुझि कारोबार क रहल अछि । कानून त बनल अछि मुदा रक्षके भक्षक बनल अछि । आखिर केकरापर आश करब ? समाजक एहेन रित देखिकए आओर चिन्ता लागैत रहैय । सभकेओ पुरुषके गाइर मात्र पढैत रहैत छी मुदा आइ हम अपन सासु अर्थात महिलेद्वारा पीडित छी । कियाक त सदिखन दहेजक बात हमर साउसे करैत रहैत अछि ।
ललिता, हमरा पीडा असहय भेलाक बाद आइ मोनक बात चिट्ठीक माध्यमस लिखए लेल बाध्य भ गेलियौ । गै तुँ त हमर अति निकटके सँगी छी ने । तैं तोरालग एकता प्रस्ताव राखि रहल छियौ । हमरा पूर्ण रुपेण विश्वास अछि । तों पूरा करबिही । हमरा पता चलल जे तोरो घरवाला दहेजक कारण सऽ तोरा छोडि देने छौ । एखन गामेमे मजदुरी क कए गुजारा चला रहल छे । आब किछु करए पडतौ । हम तुँ जे दुःख झेल रहल छी एकरा आब अन्त्य करए खातिर शसक्त अभियान चलाबए पडतौ । कियाक त एनजिओवादीसभ एखनधरि स्वार्थसिद्धि मात्र कएलक अछि । तैं डलरबादीसभके पाछाँ छोडि हमरे तोरे अभियानके आगु बढबए परतौ । हम सेहो एहि नारकीय पारिवारिक जीवनस एहिबेरक अन्तराष्ट्रिय नारी दिवसके अवसरमे माथमे ललका कपडा बाँधि उन्मुक्त भ अभियानमे जुटबाक सोच बनौने छियौ ।
नहि चाही एहन सामाजिक कुसंस्कार एवम् मानवता बिरोधी क्रियाकलाप । जा धरि जीयव सामाजिक बिकृति विरुद्धक अभियानमे जुटब । दुलहा खरिद बिक्री करएवाला आ दहेजक दानवके समाजस मेटाय क’ रहब । गै ललिता, एहन नारकीय जीनगी जी के कि करबे ? तैं आब देरी नहि कर जुटि जो अभियानमे । हँ, एकटा बात याद रखिहे नारी दिवसक दिन गामक पुरनी पोखैरपर भिनसरे ठिक चाइर बजे अबिहे । हम ओहिठाम बाट तकैत रहबौ । गै घरस आबएकाल किछु नहि लिहे । बस एकटा झोरामे कलम आ डायरी ल लिहे ।
ललिता, चिठि सेहो नम्हर भ रहल छै । अभियानेके क्रममे आओर विशेष बात करबे करबौ । सप्पत हमर तों ठिक समयपर एबेटा करिहे । हम बाट तकैत रहबौ । एखनके लेल एतबे ।
तोहर सखी
साबित्री