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विलुप्त होइत पबनि सामा चकेबा

– करुणा झा
मिथिला कऽ संस्कृति  तऽ अनुपम अछिये संगहि मिथिला के पवनि त्येहार लोक गीत, संगित, कला, आलोक पर्व सेहो अतुनीय अछि । रक्षाबन्धन, भातृ द्धितिया जकरा मिथिलाञ्चल मे भरदुतिया कहल जाइत अछि । भाई बहिन के पर्व जका सामाचकेबा सेहो भाईबहिन के मधुर प्रेमके पावैन के रुपमे पुरे मिथिलाञ्चलमे मानल जाइत अछि । छठि पावैन के दिन सँ सुरु भ कार्तिक पुर्णिमा के समापन होयत अछि ।  शास्त्र के अनुसार द्धापर युग के कथा अछि । राजा जाम्बन्त के पुत्री जाम्बती के विआह कुष्ण सँ भेल छल । जाइ सँ हुनका एकटा बेटा आ एकटा बेटि भेल– शाम्ब आ शाम्बा । शाम्बा के प्रेम चारुक्य नामक यूवक स भेल । चुडक नाम के चुगल खोड – एकदिन इ बात कुष्ण के जा कऽ कहिदेलक । कृष्ण अपन पुत्री के श्राप देलनि जे आँहा चकवी पंक्षी बनि कऽ भरि दिन आकाशमें विचरण करु । शाम्बा के पंक्षी चकवी बनि गेला पर चारुक्य भगवान शिव के खुब तपस्या  केलनि भगवान शिव सँ वरदान मांगलनि जे शाम्बा के पुनः मानव जन्म मे परिणत कऽ दिअ । भगवान शिव कहलनि जे हम कृष्ण के श्राप के त नई बदलि सकैत छी, मुदा हम अहँु के चकवा पंक्षी बना कऽ चकवी संग आकाश मे विचरण कर के वरदान देब आ ओइ दिन सँ चारुक्या आ शाम्बा चकवा–चकवी बनि कऽ आकाश में विचरण करय लागल ।आकाशमे पंक्षी बनि कऽ उडैत उडैत हुनकर सब के हालत खराब होमय लागल । अपन बहिन कऽ इ हाल देखि भाई शाम्ब बहुत  दुःखी छल । ओ वृन्दावन में जाऽ भगवान  विष्णु के आराधना करय लागल, जे दुनु के मनुष्य रुम में वापस लाबी । चुडक वृन्दावन में आगि लगादेलक शाम्ब के कुकुर झाँझी चुडक के आगि लगाबैत देखि लेलक आ ओकर मुँह नोंचि लेलक आ पानि आनि आनि कऽ आगि मिझौलक । तखन शाम्बा के तपस्या पुर्ण भेल । आ ओ अपना बहिन बहिनोई के मनुष्य रुपमे  वापस आनलनि आ कृष्ण सेहो अपना राजमें  आबय के अनुमति देलनि । शाम्ब , अपन बहिन के नगर के बाहर एकटा जोतल खेत में बैसौलनि आ ओहि दिन सँ लोग सामा चकेबा कह लागलनि आ सब मिलि गीत गौलानि साम चक, साम चक–२ अबि ह हे , कुड खेत में बैसि ह हे  चुडक के चुगलखोडि  प्रवृति के कारण शाम्ब चुडक के (चुगला) श्राप देलनि जे जाइ मुँहस तु हमर बहिन के चुगली केले, लोग तोहर मँुँह झडकैतउ आ तोरा कतउ सम्मान नहिभटेतउ । मुदा आब गाम सब शहर के चपेटमे  आबि रहल अछि । गाम घर के लोग शहर में आबि कऽ शिक्षित भऽ रहल अछि सामा खेलनाई आब नव यूवती सब गंवारपना के निशानी बुझै छथि । आब गाम घर में सेहो इ पवनि विलुप्त होई के अवस्था में अछि । अपन मिथिला संस्कृति, कला नाथ लोकपर्व कऽ संरक्षण  संवर्दन कऽ लेल बहुत रास संघ–संस्था सब काज कऽ रहल अछि । हुनको सब के जिम्मेवारी बनैत अछि अहि पवनी के संरक्षण करबा कऽ । अपन मिथिला के संस्कृति के जोगाउ, नई तऽ पहचान मेटा जायत ।