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आगि लागल करेजामे पानि ढारि दिय
  • विद्यानन्द वेदर्दी
    राजविराज,सप्तरी
    हाल:विराटनगर,मोरङ्ग

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आगि लागल करेजामे पानि ढारि दिय
हमर रगरगमे प्रेमक नसा उतारि दिय॥

असगरमे हाथ पकड़ैत खन मारैछी मुके मुका
बरू सबहक सामनेमे दुइटा गारि दिय॥

बनल छी अवारा,अहिँके स्नेहक कमि सँ
अपन प्रेम दऽ कहुनाकऽ सुधारि दिय॥

देखु कोना आन्हर बनि जीवैय ‘विद्यानन्द’
जीवनक डगरमे इजोत अहाँ बारि दिय॥

प्रेम आ साथ अहाँ नै दऽ सकब तब
अपने हाथे विख पियाक ऽ मारि दिय॥
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