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समाचार भिडियो अडियो विविध हाम्रो बारेमा

– देवेन्द्र मिश्र

एम्हर फेरो किछु दिनसँ भारत आ नेपालक सम्बन्ध चर्चामे आबए लागल अछि आ देशक किछु शीर्ष नेतालोकनि देशक वास्तविक समस्याकें सम्बोधित करबाक बदलामे परम्परागत रूपसँ स्थापित दू देशक सम्बन्धकें विवादमे अनबाक काजमे व्यस्त देखल जा रहल छथि । नेपाल आ भारतक सम्बन्धक व्याख्या जाहि कूटनीतिक आ कर्मकाण्डी तरीकासँ कएल जा रहल अछि, स्थिति ताहिसँ भिन्न अछि । विश्वक मानचित्रमे नेपाल आ भारत एकटा पड़ोसी देशेटाक स्तरक नहि भऽ, बहुते रास विशिष्टतासभसँ भरल आ अद्वितीय सम्बन्ध रहल देशसभ अछि ई दूनू । एहि दूनू देशक वासिन्दासभ सिर्पm कहबाक लेल तऽ निश्चित आ निःसन्देह रूपें दू देशक अछि, दू टा अलग–अलग स्वतन्त्र आ सार्वभौमसत्ता सम्पन्न देशक । मुदा दूनू पारक लोकसभक आवत–जावत, रहन–सहन, कर–कुटमैती, तीर्थ–ब्रत आदिक सम्बन्ध वास्तवमे एक्के देशक लोकसभ जकाँ देखल जाइत रहल अछि ।  मधेशक भूभागक भरिसके कोनो परिवार होएत, जकर कोनो ने कोनो तरहें वैवाहिक सम्बन्ध भारतमे नहि होए । बहुते रास परिवारमे ओइ पारक बेटी एतुक्का पुतहु अछि, तऽ एतुक्का बेटी ओतुक्का पुतहु । अयोध्याक बरियाती हेमनि धरि जनकपुर आबिए रहल अछि आ नेपालक केओ अयोध्या वा जगन्नाथधाम जाए तऽ सार–बहिनोइ जकाँ गारि पढ़ले जाइत अछि । ओइ पारक अयोध्या,बृन्दावन, चारु धाम, वैद्यनाथ धाम, गङ्गास्नान, जगन्नाथ धाम, रामेश्वरधाम आदि प्रसिद्ध तीर्थस्थलसभ एहि पारक लेल अनिवार्य जकाँ रहल अछि । पितर पक्षमे भारतक गयामे श्राद्ध नहि कएलासँ पितरक उद्धारे नहि होएबाक गप पुराणसभमे उल्लेखित अछि आ व्यवहारोमे अछि । हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, कुरुक्षेत्रक महाकुम्भमे स्नान करबाक लेल कोन पहाड़वासी आ कोन मधेश वासी, के नहि जाएत होएत ? तहिना शिवराति आ आनो–आन समयमे पशुपतिनाथक दर्शन, जनकपुरक जानकी मन्दिर,सुनसरीक बराह क्षेत्र, मुक्तिनाथ आदिक तीर्थयात्रा नेपालीसँ कम संख्याँमे भारतीय लोक नहि करैत छथि । एहि दुआरे ओइ पारक जाहि तीर्थस्थलमे जाइ, ओतए नेपाली ललमोहरिआ पण्डा रहल करैत अछि आ एहि पारक पशुपति मन्दिरमे एखनहुँ दक्षिण भारतीय पुजारी छथि । नेपालक लोकसभक भारत सङ्गक जातिगत, सामाजिक, धार्मिक, र्सास्कृतिक सम्बन्ध नह आ मासुक सम्बन्ध जकाँ ओझराएल अछि । इएह कारण अछि जे भारत दिशक कोनो गाममे आगि लगैत अछि तऽ नेपालक मधेश क्षेत्रक  लोकसभ पानि लऽ कऽ दौड़ैत अछि आ नेपालमे बाढ़ि वा भूकम्प अबैत अछि तऽ सबसँ पहिने भारत पहुँचैत अछि झोरा–बोरामे किछु लऽकऽ । तैं नेपाल आ भारतक आपसी सम्बन्ध आन–आन सीमावर्ती वा समुद्र पारक आन–आन पड़ोसी वा गैर पड़ोसी देशसभक तुलनामे किछु भिन्न अछि ।

ई तऽ भेल धार्मिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक सम्बन्धक गप । शैक्षिक क्षेत्रमे सेहो दूनू देशक ओतबे सहकार्य रहल अछि । पचीस–तीस वर्ष पहिने धरि भारतीय शिक्षकलोकनि नेपालक विद्यालयसभमे शिक्षकक रूपमे रहि कऽ न्यूनतम वेतनमे एतुक्का लोकसभक शैक्षिक अभ्युन्नतिमे जे योगदानसभ देलनि अछि, तकरालेल नेपालकें कृतज्ञ हेबाके चाही । त्रिभुवन विश्वविद्यालयक स्थापना होएबासँ पहिने पटना विश्वविद्यालयसँ सम्बन्धन प्राप्त कए उच्च शिक्षा प्राप्त कएनिहार विद्वानसभमेसँ बहुते एखनहुँ जिविते होएताह । नेपालमे एस एल सी परीक्षा बोर्ड स्थापना होएबासँ पहिने कलकत्तासँ एस एल सी ( मैट्रिक ) क परीक्षा देनिहार सेहो एको–दुओ गोटे जिबिते होएताह । मधेशक लोकसभ पाया कातक कुनौली, डगमारा, लौकही, मधुबनी, रक्सौल, गोरखपुर, नौतनमा, दड़िभङ्गा आ पटने आदिमे जा कऽ आ पहाड़वासीसभ वनारस, इलाहावाद, गया, कलकत्ता आदि स्थानमे जा शिक्षित भऽ सरकारी उच्च पदसभमे कार्यरत रहलाह अछि ।  एही तरहें किछु–किछु साधन सम्पन्न होइत गेलाक बाद काठमाण्डूमे समुचित  चिकित्सा व्यवस्था भेल अछि आ साधन सम्पन्न आ काठमाण्डू वासीलोकनिक सहज इलाज काठमाण्डूमे होइत अछि । मुदा मधेश आ दक्षिणी पहाड़ोक लोकसभक सुलभ आ ससत चिकित्सा केन्द्र एखनहुँ धरि दड़िभङ्गे– लहेरियासराय आ पटने–दिल्ली रहल अछि ।

राजनैतिको दृष्टिसँ एहि पार आ ओहि पारक पारस्परिक सहकार्य आ सहयोगक एकटा विशाल कालखण्डक परम्परा रहल अछि । नेपाल अर्थात काठमाण्डूक सीमानामे वर्तमान मधेशक भूभाग समाहित कएल गेलाक बादक कालखण्डमे ओइ पार भारतमे अंग्रेजक शासन आ एइ पार राणा शासन छल । राणातन्त्र अंग्रेजक सङ्ग हँ मे हँ मिला कऽ चलैत छल । मधेशक लोकसभ तथा भारतीय प्रदेश बनारसमे प्रवासी वा निर्वासित जीवन बितौनिहार पहाड़ीओ समुदायक लोकसभ सेहो भारतक स्वतन्त्रता संग्राम कएनिहारक सङ्ग छलाह । अंग्रेजकें भारतसँ भगेबाक आ भारतकें मुक्त करेबाक आन्दोलनमे नेपालोक विद्यार्थी आ प्रवासीसभ, जेना विशेश्वर प्रसाद कोइराला, कृष्ण प्रसाद भट्टराइ, गजेन्द्र नारायण सिंह, सुवर्ण शमशेर, रामराजा प्रसाद सिंह आदि सैकड़ो युवासभक चर्चा भारतोक इतिहासमे उल्लेखित अछि । तहिना नेपालमे राणा शासन अन्त करबाक लेल भेल आन्दोलनमे ओइ पारक जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, जवाहरलाल नेहरु आदि बहुते व्यक्तिसभक नाम अबैत अछि । भारतमे भेल भारत छोड़ो आन्दोलनक अन्तिम समयमे अंग्रेजक समर्थक राणासभ भारतीय नेतासभ लोहिया, जे पी आदिकें सप्तरीक मुख्यालय हनुमाननगरमे जेलमे रखने छल, जकरा एहि पारक लोकसभ रामेश्वर प्रसाद सिंह, कुशेश्वर पाठक आदिसभ जा कऽ जेल तोड़ि कऽ मुक्त करौने छलाह । ततबे नहि, नेपालक राणाविरोधी आन्दोलन करए बला नेपाली नेतालोकनि कृष्ण प्रसाद भट्टराइ, गिरिजा प्रसाद कोइराला, गजेन्द्र नारायण सिंह, कुशेश्वर पाठक, महेन्द्र राय, गणपति मण्डल, कामानन्द मिश्र आदि सीमा पार पाया किनारक गामसभ कुनौली, हरिपुर, अन्हरामठ, नेओरसँ लऽकऽ पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रमे भारतीयसभक आतिथ्यमे नुका कऽ रहैत आ आन्दोलनक विभिन्न कार्यक्रमसभ सञ्चालित करैत छलाह ।

एम्हर देशमे पञ्चायती व्यवस्था लागू कऽ देलाक बाद नेपालक प्रजातन्त्रवादी नेतालोकनि भारतेमे निर्वासित जीवन बितबए छलाह आ नुका कऽ रहैत छलाह । वि सं.२०४६ सालक आन्दोलनमे भारतक तत्कालीन शीर्ष नेतालोकनि चन्द्रशेखर, हरिकिसुन सिंह सुरजीत आदिकें एहि ठामक शीर्ष नेतालोकनिद्वारा बजाओल गेल छल आ गणेशमान सिंहक क्षेत्रपाटी स्थित निवासमे भेल विचार विमर्शक बाद चन्द्रशेखरद्वारा जे राजा विरोधी भाषण देल गेल छल, तकर कैसेट देशभरि चोरा नुका कऽ बजाओल जाइत छल । जनताक विद्रोह आ एहि भाषणक परिणामस्वरुप आन्दोलन उत्कर्ष पर पहुँचल आ देशमे बहुदलीय प्रजातन्त्रक पुनस्र्थापन भेल । ई एक दोसरक सुख–दुःखमे सङ्ग रहबाक अपूर्व उदाहरणसभ थीक आ एना आन–आन पड़ोसी देशसभमे कमे देखल जाइत अछि ।

एहि बीच माओबादी सशस्त्र जनयुद्ध प्रारम्भ भेल आ भारतेक विभिन्न ठाममे नुका कऽ माओवादीओसभ युद्ध करैत रहलाह । ओइ पारक सीताराम येन्चुरी आदि नेतालोकनिक सहयोगसँ नेपालक दलसभसँ १२ बुन्दे दिल्ली समझौता भेल आ संयुक्त जनआन्दोलनमे भारतीय नेता कर्ण सिंहक सेहो काठमाण्डू आगमन भेल छल । वि.सं.२०६३ मे अन्तरिम सम्बिधान बनल आ ताहिमे जनआन्दोलनक मुख्य बुन्दासभ सम्बोधित नहि भेलाक कारणें पहिने एतिहासिक मधेश विद्रोह आ तकर बाद दोसर मधेश आन्दोलन भेल । ओहू  आन्दोलनक सम्झौता करबाक लेल तत्कालीन नेपाली नेतालोकनिक आग्रह पर युरोपियन युनियन आ भारतीय राजदूतद्वारा मध्यस्थता भेल छल आ आन्दोलन अन्त भेल छल ।

एखन दोसर सम्बिधान सभाद्वारा नव सम्बिधान बनेबाक क्रममे सेहो नेपालक लगभग सभटा शीर्ष नेतालोकनि दिल्ली यात्रा करैत रहलाह अछि जे कखनहुँ अस्वाभाविक नहि मानल जेबाक चाही । मुदा, एखन विगतक सभटा सहमतिसभक साक्षी रहल भारत ओहि सहमतिसभक पालन  होइत नहि देखि अपन चिन्ता राजदूत मार्फत वा विशेष दूत मार्फत जे व्यक्त कऽ रहल अछि, तकरो अस्वाभाविक रूपमे नहि लेल जेबाक चाही छल । मुदा भारतक एहि जिज्ञासाकें देशक प्रतिष्ठा आ सार्वभौमिकताक सङ्ग जे जोड़बाक प्रयास भऽ रहल अछि, से कोनहुँ तरहें उपयुक्त नहि कहल जा सकैछ । आपत पड़ला पर कखनो नेपाल भारतकें किछु आग्रह करत वा भारते अपन मनक कोनो बात नेपालकें कहत, तऽ एकरा हस्तक्षेपक रूपमे परिभाषित कएलासँ पुरना सभटा मिठास तीत होएबाक सम्भावना अछि  आ ई सामाजिको सिद्धान्तक दृष्टिसँ ठीक नहि अछि । आधा जनसंख्याँक सङ्ग कएल गेल,अपने मध्यस्थतामे भेल पुरने सहमतिक परिपालन नहि होइत देखि केओ पड़ोसी दुःखी भऽ सकैत अछि आ सएह भेलो अछि । एखन देखबामे आबि रहल  आ बुझा रहल जकाँ नाकाबन्दी सम्भवतः इएह असन्तुष्टि थीक । एकर सम्बोधन करबाक लेल सभसँ उत्तम मार्ग ई अछि जे विगते जकाँ बरु भारतीये मध्यस्थतामे सभटा असन्तुष्ट पक्षसँ वार्ता होए आ समस्यासभक निराकरण होए । सम्भवतः ताहि तरहक प्रयास भेनाइ शुरुहो भऽ गेल अछि । सदा सर्वदासँ रहि आएल भारत–नेपालक परम्रागत सामाजिक, सांस्कृतिक आ राजनैतिको मित्रताके अनावश्यक अड़ारि, वयानवाजी आ प्रतिष्ठाक विषय नहि बनाओल जेबाक चाही । राजनैतिक रूपसँ एना किछु जिम्मेवार नेतृत्वलोकनिक कथनसभ जकाँ जँ एहेन त्वंचाहञ्च होइतो अछि, तऽ दूनू पारक जनसाधारंणकें ई सहजहिं ग्राह्य होएत कि नहि, ईहो शङ्कास्पदे अछि । नेपाल आ भारतक सुमधुर सम्बन्धके अनावश्यक रूपें नहि बिगड़ए देनाइ आजुक लेल आवश्यकतो अछि आ बुद्धिमत्तो इएह अछि नव नेपालक विकासक इच्छा रखनिहार सुच्चा राष्ट्रवादीसभक लेल  ।