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ई केहेन जिनगी
shyam
श्यामसुन्दर यादव ‘पथिक’

श्यामसुन्दर यादव ‘पथिक’
कि दिन कि राइत एको पल फुर्सद नहि
काज करएके धुनमे भुख पियास नहि
दोसरके सुधि लैत अपन लेल समय नहि
सुन्दर बिछाओन मुदा आरामके नसिब नहि
ई केहेन जिनगी……
नम्बर मोबाइलमे मुदा बात करएके समय नहि
कखनो हमरा फुर्सद त कखनो हुनका नहि
मिलनकेर आश मुदा मिलएके समय नहि
पर दुःख देखि चिन्तित अपन दुःख याद नहि
ई केहेन जिनगी……
काज केहेन, दिनभरि घुमिते फुर्सद नहि
नित्य एकहिटा काज, कहियो अन्त्य नहि
हमर लेल पावनि त्यौहार किछु नसिब नहि
सब दिन ठरल भात, गरम त संयोग नहि
ई केहेन जिनगी……
जहान परिवारसँगे खुशी बाँटब ठाम नहि
दिनभरी बाहर आ रातिमे सेहो आराम नहि
लिखैत हिसाबक ढर्रा मुदा जेबमे एको पाइ नहि
महल सोफा बैसै छी मुदा अपन लेल खाटो नहि
ई केहेन जिनगी……
सङ्गी महल अटारी, हमर घरक बडेरी पर छार नहि
कतौ एसी लागल, हमर घरमे टाटोके जोगाड नहि
ई लेब उ लेब कि हमर धीयापुताक आकांक्षा नहि
सुख सयलके जीनगी जियब कि हमर ईच्छा नहि
ई केहेन जिनगी….
दिल मोनके धनीक मुदा जेबमे एको पाइ नहि
काँट–कुश स भरल बाट मुदा साहस कम नहि
टङ्गघींचासभ पाछु लागल मुदा तकर परवाह नहि
देश समाजक लेल जिवाक लालसा, बिलासी नहि
ई केहेन जिनगी……