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करिया चश्मा पहीरिकऽ जगत अन्हार देखनिहारसभक हितमे जारी

करिया चश्मा पहीरिकऽ जगत अन्हार देखनिहारसभक हितमे जारी

पूर्वीय दर्शनक प्रादुर्भाव/प्रयोगस्थली मिथिलामे वसुधैव कुटुम्बकम अदौकालसँ व्यवहृत होइत आएल अछि। मिथिलाक गौरव-गरिमा आ परिचयक सशक्त आधार जनकपुरस्थित जानकी मन्दिरमे आइधरि जाति, समुदाय, पारिवारिक अवस्था आदि कोनो आधारपर विना भेदभाव सभक प्रवेश होइत आएल अछि। काठमाण्डूक पशुपतिनाथ मन्दिरमे भलहि हिन्दूसभक अतिरिक्त आनक प्रवेश वर्जित हो, मुदा जानकी मन्दिरमे सेहो नहि छैक। ई सभकेँ देखल, जानल, बुझल बात छैक। ओहुना जनकपुरमे जानकीक पूजन किशोरीजीक रूपमे होइत छनि। अर्थात् बहीन/धी हुनक मूल स्वरूप छनि। एहनमे हुनका लग पहुँचबामे माए, बाप, भाइ, बहिन आदि ककरो कोनो भाङठ नहि छैक। से चाहे विधुर होथि वा विधवा होथि– सभक लेल हुनक दुआरि सदतिसँ खूजल छनि। हँ, जानकीक भाइ-बहिनकेँ रावणीय मानसिकतासँ अवश्य परहेज भऽ सकै छनि। साफ-सफाइ आ मानक पवित्रताक हिसाबेँ सेना-पुलिसक बूटसँ लतखुर्दनि आ कुकुरक थुथुनसँ मानमर्दन भेल स्वच्छतापर्यन्तकेँ ध्यानमे राखि मन्दिरक भूमि प्रक्षालन कएल जाएब अनुचितो नहि मानल जा सकैत अछि। सत्ताक सङ चलि रहल मिथिला/मधेशवासीक सङ्घर्षकेँ देखैत जँ आन्दोलनमे लागल लोक सत्ताक संरक्षकक आगमनक बाद अपन आक्रोश ब्यङ्ग्यात्मक हिसाबेँ व्यक्त कएलक तँ तकरो बूझि सकबाक सामर्थ्य सत्ता आ ओकर साहन-वाहनमे होएबाक चाही। मुदा एकरा विधवाक प्रवेशपर मन्दिरक सफाइसन शीर्षक दऽ भ्रम फैलएबाक आ आजुक वैज्ञानिक युगमे अन्धविश्वासकेँ बढाबा देबाक जे कुकृत्य भऽ रहल अछि से भलहि हुनकालोकनिकेँ अपने पीठ ठोकबामे सहायक भऽ जाइनि, मुदा कोनो एहन व्यक्ति जकर दृष्टि एवं मानसिकता दुरुस्त छैक, तकरा नहि भरमा सकैत छैक। दोसर- राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, सभामुख आदि कहियो विधवा वा विधुर नहि होइत छथि, ओलोकनि चिर सौभाग्यशाली/सौभाग्यवती होइत छथि। एतदर्थ कृपा कऽ ओसभ आँखि उघारि अपन दूषित दिमागसँ नहि भऽ निश्छल मोनसँ देखैत यथार्थक पक्षपोषण करथि। सर्जक एवम् भाषिक, साँस्कृतिक एवम् सामाजिक अभियन्ता धीरेन्द्र प्रेमर्षिक फेसबुक वालसँ