– इतिहासविद् हरिकान्तलाल दास
राजविराज
सप्तरी जिलाक ‘छिन्नस्ता भगवती’ क नाम सप्तरीमे मात्र नहि,नेपाल उपत्यका तकमे सुनल जाइत छैक । प्रस्तुत लेखमे ‘छिन्नमस्ता भगवती’ क स्वरुप की थिक एवं भगवतीकेँ कोन नामसँ सम्बोधन होएवाक चाही से विषयमे जानकारी देवाक प्रयास अछि ।
भगवतीक नाम ‘छिन्नमस्ता’ कोना भेलन्हि ?
सप्तरी जिलाक लोकसभ एहि वातकेँ बहुत साधारण रुपमे अर्थलगावैतए छथि जे बास्तवमे भगवतीकेँ मस्तक नहि छन्हि, संगहि सिंहासनपर स्थापित कोनो देबीके सिर नहि छन्हि, तेहन अवस्थामे किनको छिन्नमस्ता कहवामे आपत्ति नहिं होयवाक चाही । ओ लोकनि वास्तविकता सँ पूर्ण अनभिज्ञ रहलाक कारणे एहि स्तम्भकारके जानकारी देवाक एकटा प्रयास अछि ।
‘छिन्नमस्ता भगवती’ कतए आ कोन अवस्थामे भेटलन्हि ?
सखडामे स्थापित मन्दिरक आगु पोखैर छैक, गर्मी मासमे पानी कम भेलापर किनको नहाइत काल पाएर क नीचा किछु गडलन्हि । उखाडि क देखलापर मूर्तिक टुव्रmा भेटलैक ई बात हमरा ओतएके बीर्तवाल स्व. हेम कुमार उपाध्याय साक्षातकारक क्रममे वर्णन कएने छलाह । हुनक कथन अनुसार ग्रामीण वर्गसँ चन्दा–बेहरी उठाकऽ एकटा साधारण स्तरके टीनक घर निर्माण कराकऽ पोखैरमे भेटल मूर्ति सभके स्थापित क देल गेलैक ।
हमर स्व. पिताक इच्छा वराबर इएह रहैएत छलन्हि जे सन्तानकेँ अपना सँँ दूर पठाकेँँ पढेवाक चाही । ओ हर हमेसा कहथिन्ह ‘अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी लक्षणम’ । एहिसँ उपरक हिस्सा सेहो अछि, परन्तु ओकर एतय आवश्यक्ता नहि अछि । हमरा पढेवाक लेल पटना पठेवाक निर्णय कएल गेलैएक जे स्वभाविके छल । ओतऽ हमर परम आदरणीय अग्रज रहैत छथि । पटना जाएवाक लेल दु साधन छल । पहिल साधन जीप छल । कोशी बाँध पर चलए लागल छल, मुदा ओहिमे आदमीके बोरामे कसल धान जँका निर्मली ल गेल जाइत छलैक । ओतएसँ लोक रेलगाडीमे चढिकए अपन गन्तव्य स्थानपर जाइत छल । निर्मली जायवाक लेल दोसर साधन वैल गाडी छल जे हमरा घरपर उपलव्ध छल । ओहि समयमे सखडा भगवती मन्दिर होइत बाट छलैक । हमरा स्मरण अछि जे हम वैलगाडीसँ उतरि कए टीनवला मन्दिरमे स्थापित भगवतीके दर्शन कऽ के पुजैगरी बला देल गेल भभूत लगाए कए दक्षिणा स्वरुप चाहि आना दक्षिण दैत छलियन्हि । ओ पुजारी भरि मन सँ हमरा माथपर हाथ राखि आर्शीबाद दैत छलथि ई वात एक बेर फेर स्पस्ट क देबऽ चाहैत छी जे ओही समयमे सेहो भगवतीक नाम सखडेश्वरी छलन्हि ।
तखन एकटा प्रश्न उठैत अछि जे सखडा मन्दिर मे स्थापित भगवतीक नाम सखरेश्वरी कोना भ गेलैक ? सिम्रौनगढक तिरहुत बंशीय राजा शक्रसिंह अपनराज्यक क्षेत्र सखडा आबि अपन कुलदेबी भगवतीक मन्दिर निर्माण करौलन्हि । प्रारम्भमे ओहि जगहक नाम शक्रा छलैक बादमे शक्रा शब्दक अप्रभंश सखडा भए गेल ।
नेपालक दक्षिणी पडोसी भारत सरकार केन्द्रीय रेलमंत्री स्व. ललित नारायण मिश्र टीनबला मन्दिरकेँ शिखरशैलीक स्वरुप देबक छलन्हि । एही बीच ओ बिहार प्रान्तक समस्तीपुर रेल स्टेशन पर बम काण्डमे मारल गेलाह । तैं हेतु सखडामे शिखरशैलीक मन्दिरक निर्माण नहि भऽ सकल । वि.स. २०४४ सालमे तत्कालीन राजा वीरेन्द्र पूर्वाञ्चल भ्रमणक सिलसिलामे सखडाक मन्दिरक जिर्णोद्धार करवाक लेल पाँच लाख रुपैया प्रदान कएलन्हि । ओहि समयक सगरमाथा अञ्चलक अञ्चलाधीश सूर्यबहादुर सेन ओली छलाह राजाद्धारा प्रदानकएल गेल रकमसँ पैगोडा शैलीक मन्दिर तयार भेल । हम श्री ओलजीकेँ वहुत निकटवर्र्ती लोक मानल जाइत छलहुँ । हमरा ओ हमेसा सखडा भगवतीक निर्माण स्थलपर लऽ जाइत छलाह । एकर दु कारण भ सकैत छल । एक त ओ मन्दिर ऐतिहासिक छल । एगारहम् शताब्दीमे वनल । दोसर वात श्री ओलीजी हमरा ई वात देखावऽ चाहैत छलाह जे राजा बीरेन्द्रद्धारा प्रदान कएल गेल रकमके बहुत समुचित ढंगसँ उपयोग कएल गेलैक ।
स्थानीय ग्रामीणवर्गद्धारा शिखरशैलीक मन्दिर निर्माण करबा देवाक आग्रह
सखडा गामक स्थानीय ग्रामीणवर्ग श्री ओलीजी लग हमर सन्निकटता देखैत हमरासँ स्व. ललित बाबूद्वारा प्रारम्भ कएल गेल शिखरशैलीक मन्दिर निर्माण करबाक देवक आग्रह कएलन्हि । ई वात ओहि समयमे संभव नहि छल कारण ओ युग पंचायतकालक कालरात्रि छल । एहेन वात कहएके कोनो प्रश्न नहि छल । हम स्वयं पंचायत सरकारक कोप भाजन भऽसकैत छलहुँ । तथापि श्री ओलीजी कऽ सम्वन्धमे एतए इएह कहऽ चाहब भले पैगोडा शैलीक मन्दिर निर्माण भेल परंच बहुत भब्य बनल । प्रवेशद्वारस लएकऽ सम्पूर्ण मन्दिरक प्राङ्गण उत्कृष्ट अछि । इ सब श्री ओलीजीक देन छियैन्ह ।
राजविराजमे शिखर शैलीक मन्दिर
राजविराजक कर्णकायस्थ लोकनि वाड नं. ९ मे भगवान चित्रगुप्तक मन्दिर निर्माण करौलन्हि । ओ मन्दिर पूर्णरुपसँ शिखरशैली अनुसार बनल । यद्यापि किछु गडवडी अवश्य छैक । जेना मन्दिर विशाल परन्तु मन्दिरमे स्थापित भगवान चित्रगुप्तक मूर्ति मात्र एक बीतके । शायद दाताकेँ कंजुसाई भऽ सकैत छन्हि । तथापि मधेस क्षेत्रमे एतएके संस्कृति अनुसार मन्दिरक निर्माण होएब एकरा लेल साधुवाद कहल जासकैत अछि । एकबेर पूनः साधुबाद ।
‘छिन्नमस्ता भगवती’क स्वरुपक सम्बन्धमे सप्तरीक तिलाठी गामक प्रकाण्ड विद्वान यदुनन्द मिश्रक अभिमत
राणा प्रधानमंत्री चन्द्रशमशेरक कार्यकालमे सप्तरी जिलाक तिलाठी गामक प्रकाण्ड विद्वान यदुनन्द मिश्र छलाह । चन्द्र शमशेर हुनकासँ कतौ यात्रा करवाक लेल समय ल कऽ सिंहदरवारसँ बाहर प्रस्थान करैत छलाह । यदुनन्द मिश्र काशीसँ ज्योतिष विद्या अध्ययन कैएने छलाह । संस्कृत भाषपर हुनक एकधिकार छलन्हि । एहि बातक उल्लेख यदुनन्द मिश्रक समकालीन काशीनाथ दीक्षित अपन पुस्तक ‘भएका कुरा’ मे कएने छथि । चन्द्रशम्शेरद्वारा मिश्रजीकँे दश दिनक लेल दशमीक अवसर मे छुट्टी देल जाइत छलन्हि । संस्कृत भाषाक प्रकाण्ड विद्वान ज्योतिषीजी गाम नहिं जा कए सखडा भगवतीक वरण्ठा पर पूजा अर्चना करएथ । विद्वान् ज्योतिषजी संस्कृत भाषमे मन्दिरक आगू लटकल घण्टामे अपने समक्ष अक्षर खोदेलन्हि । हमर पुस्तकमे ‘प्रमुख धार्मिकस्थलको आधारमा सप्तरीको राजनैतिक इतिहास, प्रकाशिका श्रीमती विद्यादेबी राजविराज–५, प्रकाशित समय १९५४) ज्योतिषजीद्वारा अङ्कित अक्षरक उल्लेख अछि जकरा हम एतए प्रस्तुत कए रहल छी । ‘जिल्लै सप्तरी प्रगन्ना पकरी भौजे तिलाठी पंडितजी यदुनन्द मिश्र तस्य धर्मभार्या जगदम्वा… सक्रेश्वरी भगवती महिष मर्दिनी श्री त्यब्रीतं घंटा समर्पणम् भैरबी चामरादात महिषमर्दिनी प्रदाकाली जगदम्बा सरस्वती रक्षन्तु सर्व कालेषु प्रार्थिता यदुननन्द’ । देखल जाय; सप्तरीको राजनैतिक इतिहास पृष्ठ ५७ लेखक दास, हरिकान्त लाल ।
ज्योतिषी यदुनन्द मिश्र द्वारा अंकित कराओ लगेल अक्षरक ब्याख्या
ज्योतिषी यदुनन्द मिश्रद्वारा अङ्कित कराओल श्लोकमे ‘सखडेश्वरी’ अक्षरक प्रयोग अछि । एहीं तरहेँ ‘महिष मर्दिनी’ वाक्य वा अक्षर दु बेर लिखल गेल अछि । एतए बिचार करवाक ई बात अछि जे सखडा मन्दिरमे स्थापित भगवतीक स्वरुप जौं ‘छिन्नमस्ता’ छन्हि त यदुनन्द मिश्र जकाँ विद्वानलोक ‘महिषमर्दिनी’ वाक्य किएक लिखोलिन्ह ? स्थापित भगवतीक स्वरुप ‘छिन्नमस्ता’ रहितैक त निश्चितरुपे ‘छिन्नमस्ता’ लिखवैतएथ । ताहि हेतु सखडा मन्दिरमे स्थापित भगवतीक स्वरुप कथमपि ‘छिननमस्ता’ नहि भ सकैत अछि । स्थापित भगवती ‘महिषमर्दिनी’ छथि ।
‘मध्य देश’ नामक पत्रिकाक अगहन २२ गते शुक्रवार क अंकमे हम सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा. अशोकानन्दक कथन उल्लेख कएने छी जे ई मूर्ति (सखडा मन्दिरमे) ‘महिषमर्दिनी’ क छियैक । ओ वात मन्दिर लग राखल घण्टामे उल्लेखित अछि । उक्त्त वात सभ के उल्लेख विद्वान पंडित यदुनन्द मिश्रक अभिमत एवं हुनकाद्वारा अंकित कराओल गेल अक्षरक व्याख्यासँ स्पष्ट भऽ जाएबाक चाही ।
‘सप्तरीको इतिहास’ मे एहि तर हेँ लिखने छी ‘घाँटी छिनेको आफ्नो टाउको आफ्नै हातमालिए। घाँटीबाट निस्केको रगतको धारा त्यसैलाई खुवाई रहेकी ।’ एही तरहे भगवतीकेँ स्वरुपक सम्बन्धमे वर्णन पाओल जायत । नेपाली भाषामे अपन पुस्तकमे हम लिखने छी । ‘आफैले काटेको, मुख खुलेको जिब्रो निस्केको टाउको देब्रे हातमा र दाहिने हातमा तरबार लिएकी र घाँटीमा टाउको माला लगाएकी र नग्न उभिएर आफ्नै घाँटीबाट निस्केको रगतको स्वाद जिब्रोमा लिईरहेकी ।’ भगवतीक उपर्युक्त विवरण सखडामे स्थापित भगवती क कोनो तरहक समानता नहि देखल जाईत छैक । मात्र स्थापित भगवती के शीर नहि छन्हि तैं ‘छिन्नमस्ता’ कहि देव सर्बथा अनुपयुक्त होयत ।
हम अपन पूर्वकेँ कोनो लेखमे जानकारी दए चुकल छी जे स्व. हेमकुमार उपाध्यायक उत्तराधिकारी श्री अविनाश प्याकुरेलजी हमरा कहने छलाह जे पोखैरमे मूल मूर्तिकेँ तीन टुक्रा भेहल छलैक जकरा जोडिकए स्थापना कएल गेलेएक । हुनकासँ कि छु बात आऔर बुझवाक छल । परन्तु मधेशक किछ गलत तत्व सभके कारणे प्याकुरेलजी काठमान्डु चलि गेलाह । इतिहासक ज्ञानक कमी रहलाक कारणँे ओ ई बात हमरा कतेको बेर कहैत रहथि जे ई भगवती ‘छिन्नमस्ता’ छथि । हम स्वयं आ हमर सहयोगी श्री पीताम्बरजी २०४१ धरि ‘छिन्नमस्ता’ मानैत छलियैक । त्रि.वि.द्वारा हमरा दुनू गोटेके जे अनुसन्धान परियोजना देल गेल छल, ताहिमे हमरा सब ‘छिन्नमस्ता’ कहने छलियैक ।बहुत आगा जा कएऽ हम इतिहासक बात राखिकए सिद्ध क देलक जे स्थापित भगवती ‘छिन्नमस्ता’ नहि बल्कि ‘महिषाशुर भगवती’ छथि । एही आलेखमे उक्त विषय पर बहुत किछु लिख चुकल छी । संभवतः गोरखापत्रक मैथिली भाषामे प्रकाशित आलेखमे प्रकाशित छिनमस्ता क स्वरुपक सम्बन्धमे हम अपन पुस्तक ‘सप्तरीको इतिहास’ मे एहि तर हेँ लिखने छी ‘घाँटी छिनेको आफ्नो टाउको आफ्नै हातमालिए। घाँटीबाट निस्केको रगतको धारा त्यसैलाई खुवाई रहेकी ।’ एही तरहे भगवतीकेँ स्वरुपक सम्बन्धमे वर्णन पाओल जायत । नेपाली भाषामे अपन पुस्तकमे हम लिखने छी । ‘आफैले काटेको, मुख खुलेको जिब्रो निस्केको टाउको देब्रे हातमा र दाहिने हातमा तरबार लिएकी र घाँटीमा टाउको माला लगाएकी र नग्न उभिएर आफ्नै घाँटीबाट निस्केको रगतको स्वाद जिब्रोमा लिईरहेकी ।’ भगवतीक उपर्युक्त विवरण सखडामे स्थापित भगवती क कोनो तरहक समानता नहि देखल जाईत छैक । मात्र स्थापित भगवती के शीर नहि छन्हि तैं ‘छिन्नमस्ता’ कहि देव सर्बथा अनुपयुक्त होयत ।
भेटल मूर्तिक सम्बन्धमे हेम कुमार उपाध्यायक उतराधिकारि श्री अविनाश प्याकुरल कथन
पोखैरमे भेटल पाँचटा मूर्ति छल । मूलमूर्ति दु टुक्रामे बिभाजित छल । ओ मूर्तिक दुनु भागकेँ जोडिकए सिंहासनपर सिमेन्ट जमाकऽ स्थापना क देलगेलैक । श्री प्याकुरेलजी के कथन छलन्हि । वल्कि हुनक कथन इहो छलन्हि जे सभ मूर्तिके शीर काटल छलैक । तै स्थानीय लोकसभ भगवतीक शीर नहि छन्हि । ताहि हेतु ई भगवती ‘छिन्नमस्ता’ छथि से कथन स्थानीय लोक सभकेँ भऽ गेलैक ।
राजा शव्रmसिंहक मन्दिर कोना नष्ट कएल गेल ?
दिल्लीक सुल्तान गयाशुद्धीन तुगलक वंगालक विद्रोही नवावकेँ सजाय देबाक व्रmममे सखडा आबि ओतऽ के मन्दिर लुटिक सम्पूर्ण मन्दिरकेँ नष्ट करैत सवटा मूर्ति सभके आगूक पोखैर मे फेकवा देलकै । पूरा क्षेत्रमे आगि लगा कए आगू बढल (सिम्रौनगढ तरफ) ओ सम्पूर्ण क्षेत्र जंगलमे परिणत भएगेल । बहुुत वरिष पश्चात जंगलक आसपास बस्ती कायम भेल । ओत धियापुता सभ गाय महीष चरेवाक व्रmममे मन्दिरक भग्नावशेष देखैत गेल ।
ग्रामीण वर्गकेँ सेहो जंगलमे टुटल फुटल सिंहासन देखवायोग्य भेलैन्हि । किछु मूर्तिक अवशेष सेहो देखवायोग्य भेलैएक जे खण्डित अवस्थामे छल । ओहि सभकेँ लेल चुनीलाल ठाकुर एकटा साधारण मन्दिर निर्माण करबाकऽ स्थापित कएलन्हि । ओहि समयमे सेहो भगवती सम्बोधन ‘सख्रेश्वरी’ नामसँ होइत छल ।
सु–प्रसिद्ध चिकित्सक अशोकानन्द मिश्रक अभिमत
एहि विषयक सम्बन्धमे सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा. अशोकानन्द मिश्रक अभिमत रहल छन्हि जे मन्दिरमे स्थापित भगवतीकिेँ ‘छिन्नमस्ता’ कहि कऽ सभ लोककेँ भ्रमित कएल गेल अछि । ओ मूर्ति ‘छिन्नमस्ता’ नहि भऽ कए ‘महिषमदिंनी’ थिक । कारण, मूर्तिकेँ पायरक निचका स्थानमे राँगाके मूर्ति देखवायोग्य होइत अछि जकरा ‘छिन्नमस्ता’ कथमपि नहि कहल जा सकैत छैक । ओ मूर्ति महिषमर्दिनी दुर्गा छियैक । ओतएके पुजैगरी लोकनि डा. साहेवकेँ घंटा डाक्टर साहेब लग पठवा देलथिन्ह, ई कहिकए अपनेक पूर्खा ओ घंटा प्रदान कएने छलाह । तैं अपने धरान पठाकए एकरा निर्माण करवा देल जाय । ओ घंटा अखनो डा. साहेबक घरमे छन्हि ।
‘छिन्नमस्ता भगवती’ किनका कहक चाही
हम जेना सुनल हुँ अछि पडोशी बिहार प्रान्तक रामगढ नामक स्थानमे छिन्नमस्ता भगवतीक वास्तविक रुप अछि एहिना काठमान्डूक पाटन मे ‘छिन्नमस्ता’ क रुप अछि । ओही तरहेँ चाँगु नारायणमे ‘छिन्नमस्ता’ भगवतीक रुप देखल जाइत अछि ।
एतए हमरा सख्रेश्वरी मन्दिरक विषयमे एकटा प्रमाण देबक आवश्यक भ गेल अछि । सखडा गामक आसपास एकटा गाम गोबिन्दपुर अछि, जतऽ क गायक छलाह स्व. चुनचुन झा । हमरा परिवारसँ काफी जुडल लोक छलाह । कारण हुनका पढेवामे हमर पिताक नीक योगदान छलन्हि । संगीतक पुस्तक एवं आर्थिक पक्ष प्रदान कए ग्वालियरमे अध्ययन (संगीतके) करोने छलथिन्ह । ओ गायककेँ संगीतक ओडिसन देवाक हेतु पटना रेडियो स्टेशन अबैत छलथि । हमरा परिवारसँ बहुत सन्निकटता रहवाक कारणे प्रायः ओ गायक महोदय हमरे आदरणीय अग्रजक डेरापर आवि विश्राम करैत छल । हम तखन वही ठामपर अध्ययन करैत छलहुँ । हमरा ओ गबैया कहैत छल ‘देखु विद्यार्थी हम सख्रेश्वरी भगवती’के वरण्डा पर भजन सुनाकऽ एतए एलहुँ । तैए हमरा सख्रेश्वरीक आशिर्वाद प्राप्त अछि । हम पक्का सफल होयब । एतए एकवेर कहऽ चाहैत छी तखनो भगवतीक नाम ‘सख्रेश्वरी’ छलैक । ‘छिन्नमस्ता’ नामक तखन कोनो चर्चो नहि छलैक । एहि गायकके सम्बन्धमे उल्लेख कए देबऽ चाहैत छी स्व. गबैआ पंडित महेश झाकेँ सम्बन्धित छलथिन्ह ।
(प्रस्तुत लेखके लेखक महेन्द्र विन्देश्वरी वहुमुखि क्याम्पस राजविराजक पूर्व इतिहास तथा संस्कृति विभाग प्रमुख छथि ।)