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– कुवेर कुमार महत्मान, मो. ९८१९७६०७६०

गरिबीः गरिबी को इंसाती जिन्दयिों के लिए बुनियादी रुपसे जरुरी अवसरों और विकल्पों को अनुलब्धा से परिभाषित किया जा सकता है । प्रसिद्ध नोवेल पुरस्कार विजेता अर्थ शास्त्री अमत्र्य सेन के विचार से ‘इसमे स्वास्थय, शिक्षा का अधिकार और जनसंख्यात्मक भागीदार’ को भी शामिल किया जाना चाहिए । इसका आशाय महज भौतिक वस्तुओं की कमी से ही नही वालिक इससे कहीं अधिक है । इसका मतलब स्वास्थ्य, लंवाजीवन, गुणवत्तापरक जीवन, स्वतंत्रता, शिक्षा, आत्मसम्मान तथा दुसरों से सम्मान पाना है ।

मधेश में गरिबी का चित्रणः मधेश में अति खाद्यान्न आभाव वाले परिवारों की संख्या १९%  है । ५५% बच्चे रक्त अल्पतता से ग्रस्त है । ५५% बच्चे रक्त अल्पतता से ग्रस्त है । २०% लोग क्षय के स्थिति मे है । ४५% महिलाएँ एनिमियाँ से प्रभावित है तथा ३५% महिलाए दुवलेपन से पिडित है । ६५% लोग के घरमे सौचालय नही है । मधेशमे ४५% मुस्लिम तथा ८०% मुसहर भुमिहीन है । निजामति सेवा मे ७% उच्च राजनैतिक पदों पर मधेसियों की उपस्थिती ९% तथा न्यायपालिका में ८% है । सरकारी मिडिया में ६% है । मधेश में औसत आयु ६५ वर्ष मानी गई है । अनेक प्रकार के आर्थिक दोहन, राजनैतिक अपेक्षा तथा अनेक प्रकारके असमान कानून की वजह से और खस ब्रम्हमण वादी मानसिकता के कारण आत्मसम्मान तथा दुसरों से सम्मान पाना मधेसियों के लिए दुर्लभ सा हो गया है । जिसके कारण मधेसियों में स्वार्थीभावना और गुलामी मानसिकता पैदा हो गयी है ।

अतः मधेश के गरिबी के मसले को समझने के लिए समावेशी दृष्टिकोण अख्तियार करते हुए गरिबी को वरकरार रखने या उत्पन्न करने वाली संरचनाओं और प्रक्रियाओं को समझना होगा । समावेशी की प्रक्रिया के तहत समाज के सभी तबकों की सहभागिता सुनिश्चित होगी । समान अवसरों के मूल भावना समनता के सिद्धान्त में निहित है । इसमे अपने पूर्वाग्रहों से उपर उठना होगा ।
मधेश के मुद्दे को समझने का मतलब है उन विचारों को सामना करना जो मधेश कें युवाओं के जेहन में उमडते है, और यथार्थ परक भी है । मधेशी सरोकार के विषय पर प्राज्ञिक वर्ग और मिडिया ने भी बहुत ही कम ध्यान दिया है । मानव अधिकारवादी संस्थाओं ने भी मधेसियों के प्रति भेदभाव कर मुद्यो को नही उठाया । नेपाली मिडिया में मधेश के यथार्थपटक वातों का कवरिज न्यून रहता है । उसमे मधेश के महिलाओं को डायन वताकर यातनाकी वातें तथा मधेश के लागो के चरित्र हत्या का समाचार रहता है ।
देश के भितर के नागरिक समाज तथा मानवअधिकारवादी संस्थाएँ भी मधेश मे होनेवाली घटनाओं और समानता समावेशी तथा आत्म सम्मान के आवाज पर उदासिन रहता है । वे एक मठाधीश के तरह ही किसि मठ या धरोहर के इद गिर्द अपनी बातों को रखते रहते है ।